शब्दअंध:- एक झलक

रात के बीच वाले प्रहर मे वो बच्चा अचानक जाग गया, कैसा अलग ही आवाज था वो। 

उसे अब भी सुनाई दे रहा था। गटाल ग्र.. Ss गटाल ग्र.. Ss

आवाज कहा से आ रहा है ये जानने के लिए उसने अपनी नजरे सारे कमरे मे घुमाई पर बस अंधेरा ही तो था वहा। 

लाइट चली नहीं गई थी

वो तो थी पर ठिक से काम नहीं कर रही थी। 

झिरो लाइट बार बार ब्लिंग हो रहा था जैसे लगातार पलके झपका ने पर कभी अंधेरा तो कभी प्रकाश दिखता है, 

उसी तरह कमरा बीच बीच मे रौशन हो रहा था। 

खटक.. Ss दुसरा एक आवाज उस शांत वातावरण मे गूंजा। 

सुनते ही उसके सिने पर जैसे कोई बड़ा सा पत्थर गिर गया। 

वो बारा साल का बच्चा घर मे बिलकुल अकेला था। 

उसके बाद चिटकनी खुलने का आवाज भी आया। 

वो देख रहा था की दरवाजा अब बहोत ही आहिस्ता सा खुल रहा है.... 

होंठ और गला सुखने लगे थे। 

भय से भरी आँखे बडी होकर सामने का नजारा देख रही थी। 

पर ये क्या? 

खुलता हुआ दर अचानक बंद हो गया। 

बाहर बरामंदे मे जरूर कोई खडा था। 

कीवाड के पास वाली पुरानी रॉड लगी खिड़की से एक परछाईं अंदर झांक रही थी। 

देखकर उसके हाथपैरौ मे कपकपि छूटने लगी थी। 

उसकी शक्ल ऐैसी दिख रही थी मानो अभी वो फुट फुट कर रोना चाह रही हो

पर आवाज गले से बाहर ही नहीं आ रही थी, गला रुंद सा गया था। 

लग रहा था की अभी कंबल ओढकर उस सियाह अंधेरे मे खुद को छुपा ले। 

फिर उसने कछुवे की खोल जैसा कंबल अपने सारे बदन पर लपेट लिया। 

उसके अंदर से आवाज आ रही थी की उसे अब भागना चाहिए

पर कहा? 

कहा भागेगा वो? 

उसके अपने घर से भागकर आखिर वो जायेगा कहा? 

उसे किसीसे मदत की दुहार लगानी चाहिए

लेकिन नहीं ये भी नहीं हो सकता। 

एक तो उसका आवाज गले से बाहर नहीं फुट रहा है, और दुसरी बात ये की अगर वो कितनी भी जोर से चिल्लाता है तो भी यहा कोई नहीं आने वाला। 

घर के आसपास मिलो दुर तक कोई भी घर नहीं है। उसका घर जंगल से सटकर ही है। 

वो ऐैसा सोच ही रहा था की तभी बाहर खुसर-फुसर सुनाई दी। 

रात के कीड़ो की कीर् कीर् के सिवाय एक तेज फुसफुससाहट अंदर आ रही थी। 

अब उसने और भी कसकर खुद को कंबल मे जकड़ लिया। 

डर उसपर पूरी तरह से हावी हो चुका था। 

उसी वक्त दरवाजा एक बार फिर से खुल गया। 

अब बैठे बैठे ही किसी किल जैसा अपनी जगह पर वो ठिठक गया था। 

सामने का दृश्य वो किसी तस्वीर की तरह देख रहा था। 

एक ऐैसी तस्वीर जिसमें रंग ना हो सिर्फ कालिख हो

एकदम सियाह कालिख! 

खुले हुए दरवाजे मे कोई खडा था। 

उसने अपना कदम चौखट पर रखा और लाइट बहोत तेजी से ब्लिंग करने लगी

लग रहा था मानो अब वो फुट ही जायेंगी। 

पर ऐैसा कुछ नहीं हुआ वो स्थिर हो गई और सारे कमरे मे एक नीम रौशनी फैल गई। 

इतनी सी रौशनी मे उसे दरवाजे मे खडा वो जो कुछ भी था।दिख पडा। 

देखते ही देखते लड़के की आँखे बडी हो गई। 

कीवाड मे एक बूढ़ा खडा था। 

जो उसे ही एकटक घूरे जा रहा था। 

लंबा चेहरा, छोटी आँखे बैठी हुई नाक, फटे हुए होंठ और उनके कोनो से निकले हुए दो दांत! 

पुरा सर गंजा

चेहरे पर उठी हुई झुर्रियां

पुरा शरीर जैसे हड्डियों का पंजर

साथ उस बुढे के चेहरे पर गाल इतने दबे हुए थे की लग रहा था बस खोपड़ी की हड्डी हो। 

वो बूढ़ा बौना था

उसके हाथ जानवरों के पंजो जैसे नुकीले दिख रहे थे। 

लड़का उसकी आँखों मे देखे जा रहा था जो जले हुए कोयले की तरह चमक रही थी। 

बूढ़े की पैनी नजरे लड़के के तन बदन मे गढ़ती जा रही थी। 

लड़का बचा कुचा दम लगाकर जोर से चिखा। 

पर चीख बाहर निकली ही नहीं वो अंदर ही मर गई। 

उस बूढ़े ने अपनी एक जालीदार उम्लि उपर उठाई। 

और लड़के को अपने साथ चलने का ईशारा किया। 

लड़के को अपने बेड से उठाना ही नहीं था, पर अब ये उसके बस की बात कहा रह गई थी। 

लड़के ने अपने शरीर का काबू खो दिया था। वो बूढ़े के पूरी तरह से नियंत्रण मे आ चुका था। 

जैसे उसकी अपनी सोच, मन, बुद्धि कुछ भी मायने ना रखता हो

उसका अपना शरीर जो कुछ देर पहले उसके कंट्रोल मे था। उसकी सारी बातें मानता था, अब जैसे वो उसके खिलाप हो गया था। 

लड़के ने अपनी पूरी ताकद निचोड़ने की कोशिश की पर सबकुछ बेकार था। 

उसके पैर मंत्रमुग्ध होकर उस बूढ़े के पीछे चलने लगे थे। आखिर कहा जा रहे थे वो दोनों? 

बहोत देर बाद बूढ़ा एक जगह पर रुक गया। 

सामने नदी थी। 

उसने लड़के का हाथ पकडा और उसे पानी मे धकेल दिया। 

हडबड़ा ता हुआ लड़का होश मे आया। 

बूढ़े ने उसे फिर से जमीनपर ला पटक दिया। 

और अपने फटे हुए होठों मे कुछ बुदबुदाने लगा

उसके मुह से मच्छरों की गुन गुन जैसी आवाज आ रही थी। 

नदी की रेत पर लड़का एकदम असहाय सा बैठा हुआ था। 

उसकी नजरे बूढ़े को उसे छोड देने की याचना कर रही थी। 

और वही पास वाली झाड़ियों की झुरमुठ से फुसफुसाहट आने लगी। 

उन झाड़ियों मे कोई था

लड़का हिलती हुई झाड़ियाँ देखने लगा

ध्यान से देखने पर उनके अंदर कही सारी आँखे चमकती हुई दिखने लगी। 

सारी आँखों के रंग लाल थे। 

बस आँखों की एक जोडी ऐैसी थी जो नीले रंग मे चमक रही थी। 

फुसफुसाहट अब गुर्राहट मे बदल चुकी थी। 

"नहीं ये तुम्हारा खाना नहीं है! हर इंसान खाना नहीं होता समझा करो बेवकूफो.... समझाओ इन्हें तुम्हारी बात मानते है ये"  बूढ़ा झाड़ियो मे घूरता हुआ तेजी से बोला। 

पर अब लड़के का ध्यान बूढ़े की बातों पर नहीं था। वो पानी से बाहर आती हुई अजीब सी चीज को देख रहा था। 

सच मे इतनी विचित्र चीज उसने कभी नहीं देखी थी। 

आखिर क्या है ये? अजगर! 

नहीं अजगर से भी कुछ अलग, पर अजगर जैसा ही कुछ। या थोड़ा किसी विशाल अनाकोंडा जैसा! 

सिरपटता हुआ

रेंगता हुआ। 

इसकी आँखे कितनी पीली है

लड़का उसे देखते हुए ऐैसा सोच ही रहा था की, मध्यम गती से वो साप जैसी चीज वहा से निकल गई। 

लड़के ने चांद की रौशनी मे उसका हरा रंग देख लिया

बिलकुल तुलसी के पत्तों की तरह हरा था वो। 

लड़के को उस चीज से डर भी लग रहा था

और दुसरी तरफ वो रेंगती हुई पीली आँखों वाली चीज उसे आकर्षित भी कर रही थी। 

उसमें कुछ ऐैसा था जो उसे अपनी तरफ खिच रहा था। 

और वो खिचाव लड़के को बहोत अच्छा लग रहा था। 

वो अपने घर से इस बूढ़े के पीछे बहोत दूर आ चुका था। 

नदी को देखकर उसने अनुमान किया था। 

नदी की दूरी घर से बहोत लंबी थी। 

पता नहीं अब उसके साथ क्या होने वाला था। 

लेकिन जो भी उसके साथ होने वाला था

उसका उसके जिंदगी के साथ ही कहीं जिंदगीयों पर असर पड़ने वाला था। 

*****************

क्या आप जानना चाहते है की इस घटना के साथ उस लड़के के साथ क्या हुआ? 

तो शब्दों को पकड़कर उनके साथ चलिए

शब्द बहोत कुछ कहते है। 

ये इस कहानी की झलक थी

पहला भाग जल्द ही आ रहा है।

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